किराये का मकान

किराये के मकान पर करोडो लगाऐ
घर का मकान टुटा जाऐ
विसंक इन नासमझो को
कोई भला कैसे समझाऐ .....


जहॉ हमेशा रहना नही, उसे कभी अपना कहना नही । 
जबलपुर के शर्मा जी सरकारी नौकरी में है और सरकारी नौकरी की यही विडम्बना है कि कभी भी आपका स्थानांतरण यानि तबादला हो सकता है । हर बार नया शहर, नये लोग और एक नया घर .... लेकिन किराये का घर, जिसे चाहकर भी अपना नही कर सकते.... उस घर से आपके मन के तारतम्य नही जुड सकते । दुसरी और बार बार तबादला होने की वजह से शर्माजी का अपना स्वास्थ्य बिगडने लगा, वो खुद को जरा भी समय नही दे पा रहे थे ।
शर्मा जी की धर्म पत्नि और बच्चे जिस नये घर में जाते .. वहा अपनी फरमाईश की सुची शर्मा जी को सौप देते ।
नये पर्दे, नई बैड शीट, नया फर्निचर, नये बर्तन, दिवारो का रंग रोगन इत्यादि..... लेकिन शर्मा जी इन सब खर्चो को व्यर्थ का मान कर अक्सर टाल देते, क्योकि कुछ समय बाद तो ये घर छोडना ही है तो फिर क्यो इस घर पर फिजुल में इतना पैसा लगाया जाये ।
मेरी इस बात से तो आप भी सहमत होंगे, क्योकि किराये का मकान कभी अपना नही होता ... अगर कोई टुट फुट है भी तो मरम्मत का काम आप क्यो करवाओगे ?
यहा किराये के मकान का रुपक मैंने आपको अपने शरीर और आत्मा में भेद दर्शाने के लिये बताया है ... हर जन्म या भव में ये आत्मा एक नये शरीर मे निवास करती है,
हम सभी भी शर्मा जी की धर्म पत्नि या बच्चो की तरह ही किराये के मकान पर ही खर्चा किये जा रहे है ।
क्या आप भी शर्मा जी की ही तरह खुद पर ध्यान नही दे पा रहे हो ?

तो मैंरे सान्सारिक बंधुओ, इस किराये के मकान रुपी शरीर का मोह छोड कर कुछ वक्त खुद को दो.... देखो कि आप खुद अपने साथ होकर भी कितने अकेले हो ।
अस्थाई शरीर का मोह छोड कर स्थाई आत्मा के स्वरूप को समझने की चेष्टा ही मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करेगी ।

जय जिनेंद्र


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