सत्य की ही विजय होती है..... फिर भी हम झूठ का दामन नहीं छोड़ते ....... ऐसा क्यों....?
हर वक्त हम झूठ का सहारा लेकर आगे बढ रहे है लेकिन ये विकास या बढ़ोतरी खोखले है.... ठोश नहीं....|
मज़े की बात तो ये है कि हमारे पास झूठ बोलने की कोई ठोश वजह भी नहीं है..... बस ऐसे ही बोल दिया.....सच बोलने का साहस नहीं सो झूठ बोल दिया...... |
बचपन में माँ स्कूल जाते वक्त टिफिन में मुझे खाना डालकर देती थी और चेतावनी देकर कहती थी कि याद रखकर खा लेना........लेकिन मै अक्सर अपना खाना स्कूल के बाहर खड़े गरीब बच्चो में बाँट देता था....और घर आकर झूठ बोल देता था कि मैंने खाना खा लिया.... माँ बहुत खुश होती थी..... ये झूठ तो फिर भी ठीक है क्यों कि इससे कितनो का भला हुआ है.......लेकिन इसके विपरीत हमारे देश के नेताओ की बात करे तो सारा पैसा खुद खा जाएंगे और बोल देंगे कि गरीबो में बाँट दिया......ये गलत है........जिस झूठ से ज्यादा लोगो का भला होता हो.... वो झूठ सच से भी ज्यादा अच्छा है |
बचपन में एक कहानी सुनी थी....... एक गाँव में एक छोटा बच्चा था.....वो बहुत शैतान था...........वो अक्सर गाँव के बाहर वाले खेत में चला जाता था जो कि जंगल के पास में था, और वहा जाकर जोर जोर से चिल्लाता ......शेर आया , बचाओ......शेर आया.....बचाओ................गाँव वाले भाग कर वहा आते तो देखते वहा तो कोई शेर है ही नहीं..............बच्चा जोर जोर से हंसता और कहता मैंने आप सबको उल्लू बनाया................ऐसा उसने एक बार नहीं बल्कि कई बार किया...........और जैसा कि हम सब जानते है.....झूठ की उम्र लम्बी नहीं होती.............एक दिन बच्चा खेत में पंहुचा और जैसे उसने नज़रे घुमाई.... सामने का नज़ारा देखकर वो भोचक्का रह गया..... मानो ज़िंदा लाश बन गया हो............सामने एक विशालकाय, खतरनाक.....शेर खडा था.............शायद उसका शेर को बुलाने का सपना सच हो गया था......वो चिल्लाया ....सबको मदद के लिए बुलाया लेकिन सबने उसे झूठ समझा और शेर ने उस बच्चे की जीवन लीला समाप्त कर दी.............. बार बार झूठ बोलने से विश्वास ख़त्म होता है..........
हम सब भी तो यही करते है.........भगवान् के आगे रोज़ अपना दुखड़ा रोते है........... भगवान् मदद के लिए आगे आते है तो देखते है कि कोई दुःख है ही नहीं............ छोटी मोटी परेशानियों को दुःख नहीं अनुभव कहते है........... फिर जब वास्तव में दुःख आता है और हम भगवान् से मदद की फ़रियाद करते है तो भगवान् इसे भी झूठ समझ कर मदद के लिए नहीं आते है और हम कहते है वो ऊपर वाला निष्ठुर हो गया है..... पत्थर दिल हो गया है........|
हर छोटी सी छोटी बात के लिए झूठ का सहारा कहा तक उचित है....... घर पर कोई मिलने आया....आप मिलना नहीं चाहते तो बच्चे से कह दिया....जाओ बोल दो पापा घर पर नहीं है......पत्नी ने कहा कि घुमने जाना है तो कह दिया ... नहीं, ऑफिस में बहुत काम है....... स्कूल में लेट पहुचे तो कह दिया ..... घर पर जरूरी काम था........मोबाइल पर तो हम अक्सर झूठ बोलते है...... घर पर ही होते है और कहते है कि मीटिंग में व्यस्त हु..... ये तमाम झूठ क्या वाकई जरूरी है ?....... क्या इनके बीना जीवन चल नहीं पायेगा ?........ क्या सच इतना बुरा है ?
दोस्तों, आप कितना भी झूठ बोल ले लेकिन अंत में जीत तो सच की ही होती है....... सत्य एक बहुत ही प्यारे हवादार और छावदार वृक्ष के समान है जो आपको हर बड़ी मुसीबत से बचाता है.... अपने बच्चो को सत्य बोलने का पाठ पढ़ाइये और आने वाली पीढ़ी से झूठ की बिमारी को ख़त्म कीजिये...... नई पढ़ी को पुरानी पीढ़ी का ये तोहफा जरूर पसंद आएगा.......सत्यमेव जयते.....|
बहुत ही सही लिखा है आपने।
जवाब देंहटाएं