बाबुल की दुआए लेती जा, जा तुझको सुखी संसार मिले ...मायके की कभी ना याद आए ससुराल में इतना प्यार मिले..... जितनी बार ये गाना सुना है उतनी ही बार मेरी आँखे भर आई है....सच है.... एक लड़की जब अपने मायके से विदा होती है... आँखों में सुनहरे सपने .....लेकिन दिल में अपार गम.... आँखों से आंशु थमते ही नहीं जैसे अपना पीहर नहीं बल्कि ये दुनिया ही छोड़ कर जा रही हो...
" हैरानी होती है उसे देखकर ...एक अन्जान के लिए जीवन की दिशा ही मोड़ दी...
अब मौत का गम हमें हो तो हो उसने तो अपनी दुनिया कब की छोड़ दी...."
मौत से पहले मौत का अनूठा दृश्य होता है विदाई.....
जब चारो तरफ विलाप होता है.....
एक तरफ लड़की की माँ और दूसरी तरफ लड़की का बाप होता है....
ज्यादा कुछ नहीं बोलूँगा क्यों कि शादी एक पवित्र रिश्ता है
और इसके बारे में ज्यादा बोलना पाप होता है......
कई धर्म स्थानों में माथा टेका.... भोग चढ़ाया.... मन्नते मांगी.....के हे प्रभु ..... बेटा दे दो....लेकिन दुर्भाग्य ....बेटी हो गई.....रिश्तेदार, समाज के ठेकेदार और मोहल्ले वाले.... सभी पहुच गए .... सांत्वना देने.... ये तो विधि का विधान है.... भगवान् का आशीर्वाद है..... भला बेटा बेटी में फर्क ही क्या है......दुनियाभर की बाते लेकिन हर बात में छुपा एक व्यंग्य.....क्यों हो गई ना बेटी.....कुछ माँ बाप समाज और बड़े बुजुर्ग के तानो से डरकर बच्ची को गर्भ में ही मार डालते है.....और जो नहीं मार पाते है वो मन मारकर उसे पालते है....... कहते है समय बड़ा बलवान......सो समय निकलता गया और बिटिया बड़ी होती गई........ बचपन में भाई से तुलना ..... और जवानी में दूसरी लडकियों से तुलना.... हर वक्त उसे प्रतियोगिता का सामना करना पड़ा.... जो भाई को मिला वो उसे नहीं मिला....क्यों कि वो एक लड़की है..... भाई को उच्च शिक्षा करने बाहर भेजा गया लेकिन एक लड़की को उच्च शिक्षा की क्या जरुरत ....आखिर शादी ही तो करनी है....... छोटी उम्र में ही लग गई माँ का हाथ बटाने..... ससुराल जाकर यही तो काम आएगा..... सिलाई........ बुनाई........कशीदा..... सफाई....सब कुछ सिखाया माँ ने..... ससुराल में किसी को शिकायत का मौला ना मिले.......बचपन से जवानी तक एक ही शब्द कान में गूंजता रहा....."ससुराल"
सुन सुन कर उसके सपनो ने भी अंगडाई लेना शुरू कर दिया......मेरे सपनो का राजकुमार ऐसा होगा....मेरे सपनो का राजकुमार वैसा होगा........एक काल्पनिक तश्वीर बना लेती है अपने दिल की दुनिया में और उसी को पूजा करती है.....शायद ये ख़ुशी ही है जो उसे विदाई के समय सहारा देती है....और वो ऐसी कठिन घडी में भी हिम्मत नहीं हारती......
विदाई हो रही है.... माँ रो रही है.... बाप रो रहा है...... भाई बहन सभी रो रहे है......अरे इतना ही रोना आ रहा है तो रोक लो मुझे.....अपने आँचल से क्यों दूर करती हो माँ..... अपना प्यार क्यों छीन रहे हो पापा.... में पहले की ही तरह तुम्हारे साथ खेलना चाहती हु भैया.....हम साथ साथ खूब बातें करेंगे दीदी......हज़ारो सवाल होते है जो वो अपने परिवार वालो से पूंछना चाहती है.....लेकिन ये तो विधि का विधान है....बेटिया तो पराया धन है.....उसे तो एक दिन जाना ही है......भाई की ही तरह में भी नौ महीने तुम्हारे गर्भ में रहकर आई हु माँ....फिर भैया अपना और मै पराई कैसे ?......आज तक इस सवाल का जवाब ना कोई दे पाया है और ना ही कोई दे पाएगा.....
दूसरी दुनिया में उसका पहला कदम ……..
चारो तरफ खुशिया ही खुशिया ..... नई दुल्हन जो आई है.... उसके कदम से ये घर स्वर्ग बन जाएगा...सबको उम्मीद है....कैसे बनेगा ये तो राम जाने....
सांस.....ससुर....ननंद.....देवर....जेठ.....नान्दा.....नए नए रिश्ते.....और उन रिश्तो में अपने माँ को .....अपने पिता को.....अपने भाई को....और अपनी बहन को तलाशती वो नन्ही सी दुल्हन.... ये सभी लोग भी मेरे अपने ही तो है.... मै इन्हें उतना की प्यार ...उतना ही सम्मान दूंगी.....और मुझे भी यहाँ भरपूर प्यार और सम्मान मिलेगा.....
सुहाग रात में वो शरमाई सी लज्जाई सी अपने कमरे में बैठी थी....मन में आने वाले पालो का इंतज़ार और चेहरे पर एक अजीब सा भय.....कई कुछ गलत ना हो जाए.....और वही हुआ... पति कमरे में आता है.....और इस नए मेहमान को अपनी अमानत समझ उस पर टूट पड़ता है....वो बेचारी कुछ ना कर पाई.....सोचा था ....उनसे ये कहूँगी.....उनसे वो कहूँगी.....लेकिन उन्होंने कुछ कहने सुनने का मौका ही नहीं दिया.....वो चैन की नींद सो गए.....लेकिन ये बेचारी रात भर बेचैन सी पलंग के दुसरे कोने में दुबकी हुई सी बैठी रही और सुबह होने का इंतज़ार करती रही...... उसके सपनो का राम तो रावण निकला....जो उसे इस घर में लेकर आया वो ही उसे सबसे ज्यादा पराया लग रहा था.... क्या पति पत्नी के बीच सिर्फ शारीरिक रिश्ता होता है....? क्या मन का रिश्ता कुछ नहीं होता है....?
सुबह हुई.... पति सोता रहा लेकिन दुल्हन को जल्दी उठाना ही पड़ता है....पुरुष प्रधान समाज में नारी को आराम का अधिकार नहीं होता.... रात भर सो नहीं पाई .....और सुबह होते ही ससुराल के रीति रिवाज शुरू....फिर भी उसने उफ़ तक नहीं किया....जो जो ससुराल वाले कहते गए वो करती गई..... माँ ने यही संस्कार दिए है उसको….. दिन भर ससुराल का ड्रामा चलता रहा और फिर शाम ढल गई....दुल्हन को अब रात का डर सताने लगा.... उसे अपनी माँ की बहुत याद आ रही थी...."माँ मुझे एक बार गले से लगा लो, मुझे वापस घर बुला लो....घर के किसी कोने में पड़ी रहूंगी...तुमसे कभी कुछ नहीं मांगूंगी.... मुझे यहाँ बहुत डर लग रहा है माँ.....माँ, बचपन में मै जब रात को अकेले में डरती थी तो तुम मुझे सिने से लगा लेती थी ....पापा, आप हमेशा कहते थे...बेटी डर मत...मै तेरे साथ हु...तो अब मेरा साथ छोड़ क्यों दिया.....क्या मै आप पर भार थी......भैया, आपने तो मुझे हर राखी पर रक्षा का वचन दिता था...फिर आप अपना वचन कैसे भूल गए... आओ.भैया मेरी रक्षा करो....................
लेकिन उसकी आवाज़ ससुराल की चार दिवारी में ही घुट कर रह गई...... समय निकलता रहा...... वो अब नहीं रोती.... उसके गम कम नहीं हुए लेकिन अब उसे गमो की आदत सी हो गई है....
अब वो नई नन्ही दुल्हन से पुरानी समझदार माँ भी बन गई..... माँ की आँचल में सोने वाली वो नन्ही कली अब औरो को छाँव देने वाला विशाल वृक्ष बन चुकी है..... गालो पर धुप- छाँव, सर्दी - गर्मी, बारिस.....मौसम के हज़ार तमाचे खाकर भी वो हंसती रहती है..... क्यों कि उसके गमो की यहाँ किसी को परवाह नहीं.....
दुल्हन से माँ....माँ से सांस... चाची....मामी....भुआ.... मौसी.... दादी....नानी.....कई रिश्तो का श्रृंगार किया कुदरत ने.....और आज धरती पर लेटी हुई वो मुस्कुरा रही है..... डोली में आई और अर्थी पर जा रही है..... उम्र भर किसी से कुछ नहीं माँगा और मरते वक्त भी उसे फिक्र है तो सिर्फ अपने नाती पोतो के विवाह की.....उनके घर संसार की.... चिंता की एक पतली और लम्बी सी लकीर उसके बूढ़े ललाट पर साफ़ साफ़ नज़र आ रही है
वो चली गई ..... ससुराल में कई नई नई दुल्हन आई .....किसी ने उसे दुबारा याद नहीं किया.....वो जाते जाते बस यही सिखा गई.....
" दर्द औरो के लिए होता होगा दर्द, अपने लिए तो किस्सा है
दर्द भला काहे कैसे इसको, ये तो जीवन का हिस्सा है....
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