जीवन का महत्व....



अरे अरे...घबराओ मत..मै कोई उपदेश देने नहीं आया हु..और वैसे भी इन दुनिया में सुनने का समय किसके पास है.. हर कोई ..बस बोलना चाहता है....

कभी तारीफ़ के अंदाज़ में ..तो कभी शिकायत के लहजे में...
लेकिन अगर हम सुनने की आदत भी डाल ले तो कहने सुनने को कुछ बाकी ही नहीं रहेगा.. मन की सारी कडवाहट निकल जायेगी..

एक कान से जब कोई बात प्रवेश करती है तो उसके दबाव से मन की कडवाहट दुसरे कान से निकल जाती है...उसे और कोई रास्ता नज़र जो नहीं आता...

एक दिन मैंने जीवन का महत्व समझा जो मुझे एक नासमझ व्यक्ति ने समझाया ... मै अपनी दिनचर्या के अनुसार उस दिन हनुमान जी मंदिर में पूजा अर्चना कर रहा था.....बड़ा ही शांत और सौम्य वातावरण था...मुझे अक्सर ऐसे वातावरण में बैठना अच्छा लगता है...तभी अचानक एक व्यक्ति बड़े अशांत मन से वहा आया और भगवान् की मूर्ति के सामने जाकर खडा हो गया...वो इतना अशांत था कि ये भी भूल गया कि वो घर में नहीं बल्कि एक सार्वजनिक मंदिर में खडा है....

उसकी आँखे अंगारे बरसा रही थी....और होठ गालिया....भगवान् को गालिया...! ये कैसा अनर्थ...!
मै अपनी पूजा अर्चना भूल कर उसके शब्दों पर ध्यान लगाने लगा...वो बोल रहा था..है प्रभु....मैंने तेरा क्या बिगाड़ा है.. जो तुने मेरे जीवन में दुखो का समंदर भर दिया...मैने तो हमेशा तेरी पूजा की है....कभी कोई पाप नहीं किया...तो फिर ये दुःख दर्द किस लिए....?

मै आज के बाद तेरा नाम भी नहीं लूंगा....तुने मुझे दिया ही क्या है   ?

वो पैर पटक पटक कर आया था और ठीक वैसे ही पैर पटक पटक कर लौट गया... उसके जाने के बाद मैंने अपनी आँखे बंद कर मेरे अज़ीज़ मित्र....:''हनुमान जी'' का ध्यान किया.....उनसे इस घटना क्रम पर चर्चा की....मैंने पूछा...हे भगवान् ...वो व्यक्ति तुम पर ढेर सारे इल्जाम लगा कर चला गया और तुम चुप चाप देखते रहे...क्यों ?
क्या तुम उस साधारण व्यक्ति से डर गए ..या जो इल्जाम उसने तुम पर लगाए वो सभी सत्य है....?

भगवान् मुस्कुराए..और बोले....प्रिय भक्त....ना तो वो व्यक्ति साधारण है....और ना ही मै उससे डर गया....
सच तो ये है कि इस धरती का कोई भी व्यक्ति साधारण नहीं है....

ये एक मानवीय प्रवर्ती है कि...जो हमारे पास पहले से होता है हमें उसकी क़द्र नहीं होती...लेकिन जो हमारे पास नहीं होता हम उसे पाने के लिए व्याकुल रहते है....फिर चाहे वो बेकार वस्तु ही क्यों ना हो..

मैंने उसे जो नहीं दिया उसकी शिकायत तो उसने कर दी....लेकिन जो बहुत कुछ दिया है..क्या कभी उसने उन सबके लिए मेरा शुक्रिया अदा किया ?

मैंने कहा...प्रभु..मै नासमझ आपकी बातो का अर्थ समझ नहीं पाया...कृपया विस्तार से समझाए...

प्रभु बोले....जिन पैरो को पटक पटक कर वो यहाँ आया था....वो पैर उसे किसने दिए ?
......जिन आँखों से वो क्रोध के अंगारे बरसा रहा था वो आँखे उसे किसने दी ?
.....जिस जुबान से वो गालियों का समंदर बहा रहा था वो जुबान उसे किसने दी....

और सबसे बड़ी बात ... सुख दुःख का अहसास तो तभी होता है....जब कि आप मनुष्य जीवन में हो...तो ये मनुष्य जीवन उसे किसने दिया ?

मंदिर के बाहर बैठा वो काला कुत्ता तो मुझसे मंदिर में आकर कभी कुछ नहीं कहता...तुम्हारे मोहल्ले में सुबह सुबह रोटी की चाह में घुमने वाली वो अधमरी सी गाय तो मुझे कभी कुछ नहीं कहती....,
अरे उन्हें तो मंदिर में आने का अधिकार भी नहीं....क्यों कि वो इंसान नहीं...

अरे मूर्खो....जो तुम्हे मिला है...वो तो किसी को नहीं मिला....मानव जीवन सबसे बही सौगात है......इसका महत्व समझो....और इसके लायक बनो....

कुछ लोग तो ऐसे भी है जो इस मानव जीवन में जानवरों से भी बत्तर कर्म करते है.....तो अब आप ही सोच लीजिये कि शिकायत किसे करनी चाहिए....?

हम इंसान को...या उस भगवान् को....?

हम खुश किश्मत है कि.....हम इंसान है


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