आज मै उसके लिए लिख रहा हु जो बहुत प्यारी है....बहुत समझदार है..... बहुत भोली है....... जिसकी वजह से मै फिर से लिखने के लायक बन गया हु...
मैंने तो कलम से नाता तोड़ लिया था ......जीवन का तार सुलझाते सुलझाते मै खुद उलझ गया था .... और इस कदर उलझा कि फिर सुलझने की कोई सूरत ही ना बची....... मैंने तय कर लिया था कि मै नहीं लिखूंगा.... जमाना मेरे शब्दों को नहीं समझता है...मैंने वही लिखा जो औरो को चुभता था और खुद को भी.... जीवन में आगे बढ़ना मेरे लिए मुश्किल हो गया था... तभी एक फ़रिश्ता मेरे जीवन में आया....चारो तरफ उजाला ही उजाला फ़ैल गया ...... और वक्त की मार से बंद पड़ी आखे फिर से खुल गई ....लेकिन वो फ़रिश्ता नज़र नहीं आया....मेरी नज़रे उसे तलाश रही थी ......तभी मेरे कानो में शहद के समान मीठी और पेड़ की छाव के समान शीतल ....एक आवाज़ आई..... उस आवाज़ ने मुझे अंदर से शांत और चिंता मुक्त कर दिया ....मानो स्वयं भगवान् धरती पर उतर कर खुशियों के मधुर गीत गुनगुना रहे हो....|
मैंने पुनः लिखना शुरू कर दिया..... आज मेरे मन में निराशा का जरा सा भी भाव नहीं है...... पिता अक्सर बच्चे को डांट कर गलत बात से रोकता है... लेकिन माँ....वो बहुत ही प्यार से और दुलार से बच्चे को समझाती है....और गलत रास्ते से सही रास्ते पर ले आती है.... उस प्यारे फरिस्ते ने .......मेरे नये दोस्त ने ..... माँ की ही तरह मुझे समझाकर मेरा मन मस्तिष्क शांत कर दिया सारी चिंताए परेशानिया हवा हो गई....लेकिन बदले में कोई स्वार्थ नहीं..लालच नहीं.....कोई कामना नहीं....बस मेरे दोस्त का भला हो जाए . दोस्त ऐसे ही होते है..... दोस्त को ख़ुशी कुछ पाने में नहीं मिलती बल्कि उसका दोस्त कुछ पा ले उसमे मिलती है.....दोस्ती त्याग है.... दोस्ती विश्वास है.... दोस्ती निस्वार्थ है.......दोस्ती की परंपरा बहुत प्राचीन है.... देवताओ के समय से दोस्ती और दोस्तों के किस्से चले आ रहे है.....भगवान् श्री कृष्ण ने अपने दोस्त सुदामा के चरण धोकर उस पानी को पिया था और अपार आनंद का अनुभव किया था......भगवान् श्री राम को सुग्रीव जैसा दोस्त मिला जिसने सम्पूर्ण युद्ध में भगवान् का साथ दिया और भगवान् ने भी उसे उसका राज पाट वापस दिलवाया....हनुमान को भी भगवान् श्री राम अपना परम मित्र मानते थे और उसी हनुमान ने पुरे युद्ध के दौरान श्री राम का साथ दिया.... ऐसे ढेरो किस्से हमने सुने है.....लेकिन समझा नहीं है.... आज इस नालायक दुनिया ने इस दोस्ती को कलंकित कर दिया ...... आज हम दोस्त बनाते वक्त भी सौ बार सोचते है..... क्या ये इंसान सही है.... क्या इस इंसान से मुझे भविष्य में कुछ फायदा हो सकता है.... क्या ये मेरे रुतबे का है...... दुनियाभर के सवाल खुद से करने के बाद ..... मन और मस्तिस्क की कसौटी पर खरा उतरने पर ही हम दोस्ती करते है..... क्यों कि कदम कदम पर ठोकर खाने के बाद हम फूंक फूंक कर कदम रखना सीख गए है.....|
देवताओ से भी प्राचीन इतिहास है दोस्ती का .... लेकिन इस धरोहर को हम संभाल नहीं पा रहे है.... डर है कही ये धरोहर .... ये दोस्ती इस दुनिया से खत्म ना हो जाए....... ऐसा सोचने मात्र से ही मेरे हाथ पैर कांप रहे है..... सोचो ऐसा हो गया तो क्या होगा....... कोई किसी की मदद नहीं करेगा..... कोई किसी पर विश्वास नहीं करेगा.... कोई दोस्ती की मिशाल नहीं दे पाएगा..... अविश्वास और धोखे का काला साम्राज्य चारो तरफ फ़ैल जायेगा और वो अँधेरा इस पूरी धरती को निगल जायेगा.....
संभल जाओ ....... संभल जाओ............ संभल जाओ.......... अभी भी वक्त है..... दोस्त बनाओ ..... दोस्ती का साम्राज्य फैलाओ..... और एक ऐसा माहौल पैदा कर दो कि हर तरफ सिर्फ दोस्ती के ही गीत गूंजे........ "यारी है ईमान मेरा यार मेरी जिन्दगी.........""
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Visank is waiting for your valuable comments about this script so please write here something...