विषय आपको थोडा अजीब लगा होगा...वैसे मै अजीब विषयों पर ही लिखता हु... जो कुछ भी हमारे आस पास हो रहा है वो सभी कुछ अजीब ही तो है..... हम सभी चिन्तनशील प्राणी है इसलिए हर वक्त किसी ना किसी बात पर चिंतन करते ही रहते है.....पर ये भूल जाते है कि हम चिंतन नहीं बल्कि चिंता कर रहे है.... चिंता और चिंतन में बहुत फर्क है... चिंता परेशानियों के समाधान के लिए होती है बल्कि चिंतन जीवन को और बेहतर बनाने की लिए किया जाता है....
चिंता प्राकृतिक आपदा है बल्कि चिंतन मानव रचित उपक्रम है....|
आर्थिक परेशानी..... सामाजिक मान सम्मान ...... व्यापार को आगे बढाना..... पारिवारिक परेशानिया...... चिंता की ये सारी वजह हमें शायद कम लगती है इसीलिए हम ने कुछ और वजह भी खोज ली....जैसे कि...
आज गर्मी बहुत है......आज सर्दी बहुत है.....आज मौसम खराब है.....पडोसी के घर से जोर जोर से बोलने की आवाज आ रही है....शायद कोई झगडा हो रहा है....... अपनी परिशानिया कम पड़ गई इसलिए औरो की परेशानियों को भी अपना लिया....|
हमारे एक पडोसी श्री मान खत्री जी....को कुछ महीनो पहले एक बिमारी ने घेर लिया....अस्पताल में भर्ती करवाया गया.....इलाज़ हुआ और ठीक होकर घर लौट आए.....डॉक्टर ने सारी जांच करने के बाद उन्हें पूरी तरह स्वस्थ घोषित कर दिया.... लेकिन डॉक्टर के कहने से क्या होता है..... खत्री जी ने गहरा चिंतन प्रारंभ कर दिया....मुझे बिमारी क्यों हुई.....(जैसे खत्री जी तो भगवान् के सगे भतीजे है....और हम सब पडोसी है.. ) ....मुझे आगे क्या करना है.... दुबारा बिमारी आ गई तो..... रास्ते में कही परेशानी हो गई तो..... दुनिया भर की सोच सताने लगी ...... धीरे धीरे उनकी हालात और भी बिगडती गई...और दुबारा अस्पताल में भर्ती करना पड़ा ....डॉक्टर के शब्द झूठे पड़ गए....खत्री जी पूरी तरह ठीक नहीं है.....वजह कौन है..... डॉक्टर ? ..... परिवार के सदस्य. ?..... या पडोसी ?...... या खत्री जी स्वयं.....दुनिया भर की सोच ने उन्हें फिर से बीमार कर दिया.... मैंने उनसे अस्पताल में मुलाकात की ..... वो हर बात धीरे धीरे बोल रहे थे....मैंने उनके कान में धीरे से कुछ कहा....उन्होंने मेरी तरफ देखा....मैंने हाँ में सिर हिला दिया..... उन्होंने अपनी बिटिया की तरफ देखा और मुस्कुराए......सभी लोग उनकी ओर हैरानी से देख रहे थे.... कुछ ही समय में खत्री जी बेहतर महसूर कर रहे थे...... जो काम डॉक्टर नहीं कर पाए वो काम मेरे कुछ शब्दों ने कर दिया..... आज खत्री जी पूरी तरह स्वस्थ है.....कल मैने उन्हें बता दिया था कि मैंने उनके कान में झूठ कहा था..... वो पहले तो गुस्सा हुए और फिर हंसने लगे..... उनकी हसी पूरी तरह स्वस्थ थी.....|
क्या आप जानना चाहेंगे कि मैंने उनके कान में क्या कहा...? मैंने कहा....
आपकी बिमारी की चिंता से आपकी बिटिया मानसिक रूप से बीमार हो गई है...डॉक्टर ने कहा है कि अगर इसे ठीक करना है तो ध्यान रहे ये किसी प्रकार की चिंता ना करे......वरना इसके पागल होने का डर है..."
हम चाहे कितना भी परेशानी क्यों ना हो.... अपनी औलाद की परेशानी के आगे हम अपनी परेशानी भूल जाते है.... उनकी ख़ुशी ही हमारी ख़ुशी बन जाती है...खत्री जी ने बिटिया की ख़ुशी के लिए अपने गम को छुपा दिया... खुश रहना सीख लिया और धीरे धीरे ठीक हो गए...
समस्या उनकी बीमारी नहीं बल्कि उनकी सोच थी....हाथ पाँव में अगर चोट आ जाये....मोच आ जाये..... तो ठीक हो जाती है.... लेकिन मन की सोच का इलाज नहीं है..... सोच का इलाज सोच ही है.....नकारात्मक सोच को सकारात्मक सोच से ही ठीक किया जा सकता है....
हमेशा खुश रहो.... हँसते रहो.... मुस्कुराते रहो..... सब कुछ अच्छा ही होगा.... क्यों की सब कुछ उसके हाथ में है....
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