भीतर की दुनिया....या बाहर की दुनिया...?

कल आपसे बात करने का काफी मन किया लेकिन अपने कुछ निजी कार्यो में व्यस्त था, समय नहीं मील पा रहा था.... अपना कार्य भी मुझे पराया लग रहा था....क्यों कि आपसे एक विशेष रिश्ता बन गया है....आप अब मेरे अपने हो चुके हो....|
रात भर खुली आँखों से सोता रहा और सुबह होने का इंतज़ार करता रहा....मुझे अपने भीतर की शब्दों की ये काल्पनिक दुनिया बाहर की वास्तविक दुनिया से ज्यादा प्यारी है...न्यारी है.....ये दुनिया उस दुनिया पर वाकई भारी है....ये मेरी निजी दुनिया है वो तो सरकारी है....|
हमारे आस पास की दुनिया सिर्फ दिखावे की है....वास्तविक दुनिया तो हमारे भीतर है....बाहर की दुनिया में तो लोग आते है और जाते है, भीतर की दुनिया में लोग आते तो है लेकिन जाते कभी नहीं... वो हमेशा के लिए यहाँ बस जाते है.....अपनी जगह बना लेते है....ऐसे ना जाने कितने लोग है जो इस बाहर की दुनिया से तो चले गए....खुली आँखों से अब नज़र नहीं आते ...लेकिन जैसे ही मै अपनी आँखे बन करता हु....वो मेरे सामने आ जाते है....वो ही हँसता हुआ चेहरा.....वो ही बातें.....और वो ही पुराना रिश्ता....कुछ भी नहीं बदला....मेरी भीतर की दुनिया में...|
पिता जी अक्सर आँखों में आंशु भर कर कहते है ...बेटा, दादाजी अब हमारे बीच में नहीं है...वो भगवान् के पास चले गए...वो कब कभी भी लौट कर नहीं आयेंगे.....लेकिन तब मेरे चेहरे पर एक मुस्कान आ जाती है.....मै सोचता हु कि मै कितना खुश किस्मत हु....मेरे सारे अपने आज भी मेरे साथ है....मेरी अपनी दुनिया में....
और ये तब तक रहेंगे...जब तक मेरी दुनिया है.....|
बाहर की दुनिया में नफरत और नाराजगी हो सकती है लेकिन मेरे भीतर की दुनिया में सिर्फ प्यार है......सिर्फ प्यार.....|
जब भी कुछ मन का नहीं होता तो मै अपनी आँखे बंद कर लेता हु....सब कुछ मन का होने लगता है.....मेरे भीतर की दुनिया में......अब जाना कि ......बिल्ली को सामने खड़ा देख कबूतर क्यों अपनी आँखे बंद कर लेता है.....शायद वो अपनी भीतर की दुनिया में ज्यादा सुरक्षित महसूस करता हो....मेरी तरह......|
ध्यान.....चिंतन....तप....साधना.....तपस्या.....आराधना......पूजा.....प्रार्थना.....सभी पवित्र कार्य आँखे बंद करके ही क्यों किये जाते है....? क्यों कि भीतर की दुनिया ज्यादा पवित्र है....ज्यादा श्रेष्ठ है.....यहाँ तक की जब भी आप बहुत ज्यादा खुश होते है....या बहुत ज्यादा दुखी होते है....तो अपनी आँखे बंद कर लेते है......क्यों....?.......आप भी अपने भीतर की दुनिया को अपना सच्चा मित्र मानते है....जो शायद आपको भी नहीं मालूम...|
हम अपनी आँखे बंद कर किसी से भी मील आते है....आँखे खोलते है तो वो सामने नहीं होता....लोग कहते है...कि वो तो काल्पनिक दुनिया है.....तो ये बाहर की दुनिया क्या है....? ये भी तो काल्पनिक दुनिया ही है....फर्क सिर्फ इतना है कि भीतर की दुनिया अपनी कल्पना है....और बाहर की दुनिया उस परम पिता परमेश्वर की कल्पना है....है तो दोनों कल्पना ही है.....तो फिर बाहर की दुनिया को हम वास्तविक क्यों माने....पडोसी के घर को बँगला ....और अपने घर को भूत बंगला कहना कहा तक उचित है....?
समुन्दर में गिलास डूबा कर पानी भरा.....तो बताओ ....गिलास में आया पानी आपका है...या समुन्दर में बाकी बचा पानी.............................ठीक कहा ...गिलास का पानी आपका है.....आधा पानी पीकर बाकी आधा पानी आपने गिरा दिया...अब बताओ....जो गिराया वो पानी आपका है या जो पिया वो पानी......ठीक कहा....जो भीतर है वो आपका है.......तो अब ये भी बता दो कि आपके भीतर की दुनिया आपकी अपनी है...या आपके बाहर की दुनिया...?
सोचिये....विचार कीजिये.....और अपने भीतर की दुनिया के सुख का आनंद लीजिये......|

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