भारत माँ को तो हारना ही है....




जिस थाली में खाता हु उसी में छेद कर रहा हु ......यही सोच रहे हो ना ?
मेरे बारे कोई भी धारणा बनाने से पहले मेरी पूरी बात सून तो लो... मुझे एक घटना याद आ रही है...
मेरे पड़ोस के एक घर में दो बेटो के बीच कहासुनी हो गई....दोनों बड़े हो गए थे सो माँ की एक ना चली...वो चाह कर भी बीच बचाव नहीं कर पाई.... आखिर फैसला वही हुआ जो सदियों से होता आया है.... यानी बंटवारा...

सभी ने यही राय दी कि शांति से दोनों भाई अलग हो जाओ....ताकि समाज में इज्जत बनी रहे....माँ बड़े भाई के साथ ही रही...और छोटा भाई अलग हो गया.....

अलग होने के बाद भी उनमे लड़ाइया रुकी नहीं... तु तु मै मै चलती रही... और आज तक भी वो तु तु मै मै जारी है.... पता नहीं कौन सही है....और कौन गलत.... लेकिन जब भी उस माँ की तरफ देखता हु तो लगता है...जैसे वो तो हार ही गई....लाख कोशिश की कि दोनों भाई साथ साथ रहे...प्यार से रहे.....लेकिन विधि का विधान... हमेशा अपने छोटे बेटे को याद करती रहती है... छोटा बेटा बहुत नालायक था...बदमाश था....लेकिन फिर भी माँ के लिए तो...बेटा ही था....उसके कलेजे का टुकड़ा....

कोई बेटा हारे...कोई बेटा जीते.....लेकिन माँ को तो हारना ही है.......

ठीक उसी तरह हिन्दू मुस्लिम दोनों... भारत माँ के ही बेटे है..... आपस में लड़ कर मार कर ...हम अपना तो उल्लू सीधा कर सकते है लेकिन इस भारत माँ को तो हारना ही है....

एक बार सोच कर देखो कि क्या ऐसा कुछ हो सकता है कि भारत माँ की हार ना हो.... यानी उसका कोई भी बेटा ना हारे....


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