मेरा भगवान् कौन ?



क्या आप जानते हो कि आपका भगवान् कौन है ?
पता है यही कहोगे कि ''हा'' हम जानते है लेकिन सच ये नहीं ...
ज़रा अपने घर में बने छोटे से मंदिर में झांकना .... राम, क्रिष्ण, शिव, हनुमान.....ना जाने कितनो की तश्वीर और मुर्तिया लगा रखी है......
मुझे एक छोटी सी कहानी याद आ रही है....
दो मित्र रमेश और रहीम एक पहाड़ पर घुमने गए....अचानक दोनों का ही पैर डगमगा जाता है और वे दोनों ही एक ऊची पहाड़ी से गिरने लगते है... अचानक आए इस संकट को वो झेल नहीं पाए.... घबराहट के मारे उन्होंने अपने अपने मालिक का ध्यान करना शुरू कर दिया.......
रहीम चुंकि मुस्लिम था....सो उसने अपने मालिम यानि खुदा को याद करना शुरू किया और अंत तक खुदा को ही याद करता रहा लेकिन रमेश चुंकि हिन्दू था सो वो कभी अपने ध्यान पर अडिग रह ही नहीं पाया....कुछ देर राम को याद किया तो कुछ देर कृष्ण को.....कुछ देर शिव शंकर का धयान किया तो कुछ देर बजरंग बाली को ध्याया ........ और अंत तक वो ये तय नहीं कर पाया कि आखिर उसे किस पर भरोसा है......
रहीम हो तो उसके खुदा ने बचा लिया लेकिन रमेश खुद तो कन्फ्यूज था ही सारे भगवानो को भी कन्फ्यूज कर दिया.....आखिर में क्या हुआ....कोई भी उसकी मदद करने नहीं आ पाया और रमेश जी भगवान् को प्यारे हो गए.....ये तो मुझे भी नहीं पता कि वो किस भगवान् को प्यारे हुए....
ये तो सिर्फ एक हास्यास्पद कहानी है लेकिन हकीकत में भी हम सब यही कर रहे है.... पूरा विश्वास किसी पर नहीं कर रहे है...... इन्सान क्या ....हम तो भगवान् पर भी पूरा विश्वास नहीं करते...तो फिर फल की उम्मीद क्यों...?

मेरी आप सभी से नम्र निवेदन है कि मन में विश्वास की ज्योति को कभी ठंडा मत होने दो...क्यों वो ठंडी हो गई तो ......डंडा.....बाकि आप खुद समझदार है.......

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