जहाँ चाह वहा राह..


ये बहुत पुरानी कहावत है....अक्सर लोगो के मुह से सुनी है...लेकिन क्या इसको अपने जीवन में उतारा है..?
सफलता नहीं मिलती तो वजह हाजिर है.... रास्ते ही नज़र नहीं आये...या सुविधाए अप्रयाप्त थी.....लेकिन दोस्तों मेरा तो यही मानना है कि असफलता की सिर्फ एक वजह होती है... सफलता का प्रयास दिल से नहीं किया गया....|

एक छोटी सी कहानी याद आ रही है....एक गाँव में एक बुढा किसान रहता था...उसका बेटा किसी कारण से जेल में था .... खेत में जुताई करने का वक्त आ गया लेकिन उन बुढे हाथो में कहा दम था...बैठा बैठा आंशु बहा रहा था... 

अपने गम को कागज़ पर उतार दिया...."बेटा, तू दूर, मै मजबूर... खेत में नहीं एक भी मजदूर.... मै हो गया हु बुढा... कैसे करू जुताई का काम पूरा...?

बेटे ने जवाब में एक पत्रा लिखा और लिफ़ाफ़े को खुला ही छोड़ दिया...."पिताजी, मेरे कारण ही आपके कंधे झुके....., खोदकर निकाल लो...मैंने छुपाई है खेत में जो बंदूके..."

पुलिस ने वो पत्र पढ़ लिया...और सारा खेत खोद दिया लेकिन बंदूके नहीं मिली.....पिता ने पुनः पत्र लिखा.. बेटा बुढ़ापे में भी चैन नहीं मिला .... मैंने बहुत विरोध किया पर पुलिस ने पूरा खेत खोद दिया ....."

बेटे ने जवाब दिया..."पिताजी, समझो मेरी चाल को.... जुत गया खेत तुम्हारा मुफ्त में, अब बीज डाल दो....."

जेल में बैठे बैठे ही पिता कि मदद कर दी.....बिना साधन और सुविधाओ के....क्यों की वो मदद करना चाहता था....दोस्तों, इसीलिए कहता हु...जहाँ चाह...वहा राह..."




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