दारा सिंह नही रहे....

सुबह सुबह आदमी उठ के अखबार तलाशता है .... नहीं मिलने पर बेचैन हो जाता है.... आखिर ऐसी कौनसी खबर पढ़ना चाहते हो जिससे आपका दिन तरो  ताज़ा रहेगा..... ।
मेरे मित्र ने भी सुबह सुबह अखबार खोला....अरे... ये क्या .....दारा सिंह जी  नहीं रहे.... उफ़ ...सुबह सुबह ये क्या मनहूस खबर पढ़ ली... सारा दिन खराब जाएगा... अब सिर्फ बुरी खबरे ही मिलेगी।

क्यों.. मौत की खबर बुरी कैसे हो गई..... ?

125 करोड़ की जनता .... महगाई से और जनसंख्या वृदि से इतनी परेशान हो गई है कि मौत नहीं बल्कि अब तो किसी के  जन्म की खबर मनहूस लगती है .... मौत तो एक शास्वत सत्य है जो एक दिन आपको मुझको... हम सबको आनी है तो इसके लिए इतना लंबा चोडा ड्रामा किस लिए ।

भाई अखबार पढ़ो और काम पर लग जाओ..कल फिर कोई और कतार में तैयार मिलेगा । 

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