NEWS OR CATALYST FOR CRIME

ठीक समझा आपने .... देता छप्पर फाड़ के .... फिर चाहे वो खुशिया हो या गम ...।
सुबह की पहली किरण के साथ उठना मेरी फितरत है और इसका लाभ भी मेरी अच्छी सेहत के रूप में मुझे मिला है  .... मै इसके लिए उस जगत पिता  का तहे दिल से शुक्रगुजार हु ... सुबह सुबह देश विदेश से अवगत होना मेरी जरुरत बन गया है ...और मेरी ही क्या ..ऐसे ढेरो लोग है जिनका दिन समाचार पत्र से ही शुरू होता .... इसके बिना तो व्यक्ति शोच भी नहीं जा पाता .... बाकी के काम के तो क्या कहने ..... लेकिन आज मेरे ज़हन में आप सभी का एक विचार आया ..... यानी विचार मेरे ज़हन में आया था लेकिन मुझे पूरा यकीं है कि  ये विचार आप सभी के ज़हन में भी आया ही होगा तो फिर मै कैसे इस पर अपना ट्रेडमार्क लगा दू .....।

आज समाचार पत्र छापने वालो को ज्यादा परिश्रम नहीं करनी पड़ता क्यों कि  कंप्यूटर की कॉपी एवं पेस्ट कमांड का भरपूर लाभ मिल जाता है .... क्यों कि  एक बार जो खबर समाचार पत्र में छप गई तो बस .... फिर तो वैसी ही खबरों का ताना बाना लग जाता है ... जैसे हर प्रकार की खबरों का एक मौसम होता हो ....।

एक छोटा बच्चा "शाहरुख़" बोरवेल में क्या गिरा कि सभी माओं ने जैसे अपने बच्चो को जानबूझ कर बोरवेल में धकेलना शुरू कर दिया ... शायद खानदान का नाम रोशन करने का इससे बेहतर और तीव्र उपाय और कोई मिल ही नहीं सकता ।

सदियों से हमारे देश में आला अधिकारी रिश्वत के नाम पर समाज का रक्त चूसते रहे है लेकिन किसी ने चु  तक नहीं किया  लेकिन जैसे ही एक "ट्रेप" की खबर समाचार पत्र में आई नहीं कि ट्रेपिंग का सिलसिला ही शुरू हो गया ।

और अब दिल्ली गैंग रेप को ही लो .... इक्का दुक्का बलात्कार की खबरों के सिवाय अखबार के पन्ने ऐसी खबरों से रिक्त ही नज़र आते थे ....लेकिन अब रोज़ ढेरो खबरे इस दुष्कर्म की ही नज़र आयेंगी .....।

कभी कभी तो लगता है जैसे अखबार केवल सुचना का ही काम नहीं करता बल्कि एक उत्प्रेरक के रूप में भी काम करता है ....घटना चाहे जैसे भी हो ..... वो उसे बढाता है ....शायद बुरी खबरों को नमक मिर्च लगा कर परोसना अपराधियों में खौफ नहीं बल्कि जिज्ञासा बढ़ता है और शायद एक शोहरत पाने की लालशा भी .....।

मीडिया को एक बार हम सब के ज़हन में आये ...इस विचार पर विचार करना ही होगा .....अगर आप इस बात से सहमत है तो अपने सभी परिचितों में जरुर शेयर कीजिएगा ।

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