पहले आप पहले पाओ

प्रतियोगिता के इस दौर में ऐसे शब्दों का जाप अक्सर व्यापारिक प्रतिष्ठानों में सुनने को मिल ही जाता है लेकिन मैंने इसे जीवन की वास्तविकता से जोड़ने का प्रयास किया है ... आपकी राय जरूर चाहूँगा ।
कल सुबह मेरे बच्चे मोहल्ले में खेल रहे थे और मै घर में बैठा अखबार पढ़ रहा था ...अचानक मेरे बच्चे बाहर से भागते हुए अन्दर आये .... आखो में आंशु  और शरीर पर चोट के निशान .....साफ़ जान पढ रहा था की किसी से मार पिट करके आ रहे है। फिर भी एक पिता का फ़र्ज़ निभाने के लिए मैंने पूछ ही लिया ....क्या हुआ ?

मेरा बेटा जो कि ग्यारह वर्ष का है उसने बताया की वो बाहर खेल रहे थे कि अचानक एक खतरनाक (बच्चो के लिए) कुत्ता वहा आ गया ... हम भाग कर ...जान बचाकर  आये है लेकिन फिर भी भागते भागते गिर गए और हमें चोट आ गई .... मेरी  छोटी बेटी को भी चोटे आई थी .... उस समय तो मैंने उन्हें बहला फुसला के ..... कुत्ते से बदला लेने का आश्वाशन देकर मना लिया लेकिन शाम को ही मैंने उन्हें बुलाया और एक प्लेट उनके आगे कर दी जिसमे दो अलग अलग तरह की मिठाईया थी और पहले छोटी बेटी से कहा की तुम एक ले लो… उसने अपनी पसंद की एक मिठाई ले ली ..तब मैंने बेटे से पूछा ...तुम कौनसी लोगे ...वो  बोला ..पापा ... अब मेरे पास विकल्प कहा है ... जो बची है वाही तो मिलेगी ... मैंने उन्हें बैठाया और समझाया कि  ..यही जीवन है ... पहले आओ पहले पाओ का सिद्धांत हर जगह लागु होता है .... जब कुत्ता सामने आया था तब भी भगवान् ने एक प्लेट आगे की थी ..... जिसमे डरना और डराना नाम की दो मिठाईया थी .... भगवान् ने पहला मौक़ा तुम्हे दिया और तुमने डरना वाली मिठाई चुन ली इसीलिए उस कुत्ते को मजबूरन डराने वाली मिठाई लेनी पड़ी ....

अगली ही सुबह मेरे दोनो बच्चे हँसते हँसते ...भागते हुए आये और बोले पापा आज तो कमाल हो गया ...हमने डराने वाली मिठाई पहले ही चुन ली .... वो कुत्ता भाग गया ......

यही जीवन है…. भगवान् हर क्षण आपको दो विकल्प देता है… ख़ुशी या गम .... हँसना  या रोना .... चलना या थक कर रुक जाना .... प्यार या नफरत ..... फैसला हमारा ...आखिर जीवन हमारा है ।

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