फेसबुक पर दोस्ती या मंदिर का घंटा ..

दोस्ती करने और मंदिर का घंटा बजाने में कुछ तो फर्क होता होगा .... लेकिन ये फर्क मुझे फेसबुक पर नज़र नहीं आता .... कोई भी मंदिर आया ...बजा दिया घंटा ...ये भी नहीं देखा कि भगवान् कौनसे है .... ठीक इसी तरह आप किसी भी महिला को फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजो ...वो फट से स्वीकार कर लेगी ...लेकिन जब दुबारा बात करना चाहोगे तो पहचानने से इन्कार ... जैसे मंदिर के बाद सीढियों में बैठा कोई भिखारी खुल्ले पैसे मांग रहा हो ...। 

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