वो जल्दी में था ..


अपनी बिटिया को स्कूल छोड़ने जा रहा था .... समय हाथ में था क्यों कि ये काम रोज़ का था…. इसलिए समय कही भागा नहीं जा रहा था… मै शांत ...और शीतल पवन का आनंद लेता हुआ ...और अपनी नन्ही सी बिटिया से बतियाता हुआ चला जा रहा था ....तभी एक मोटर साइकिल सवार बड़ी तीव्र गति से हमारे पास से हमें ओवरटेक करता हुआ निकला ...और थोड़ी ही देर में आखो से ओझल हो गया ....बिटिया ने आदतन सवाल किया… पापा .... आप तो कहते हो ना कि तेज गाडी नहीं चलानी चाहिए फिर ये भैया क्यो… मैंने अपनी सीख के पक्ष में तर्क दिया ...बेटा, वो भैया जल्दी में थे ...इसलिए वो तेज चला रहे थे। 
नन्हे बच्चो के सवाल आपकी और हमारी तरह ख़त्म नहीं होते ...उसने फिर पूछा ...पापा, क्या ये भैया जल्दी पहुच जायेंगे, ...मैंने कहा ..हाँ। 
बिटिया का आखरी सवाल शायद उस प्रश्नोत्तरी को समाप्त करने वाला था ... पापा, क्या ये भैया हम सबसे पहले पहुच जायेंगे .... मैं इस सवालों के सिलसिले को ये कहकर ज्यादा खीचना नहीं चाहता था कि हम सभी की मंजिल अलग अलग है तो वो सभी से पहले कैसे पहुच पायेंगे ....सो मैंने हाँ में जवाब दे दिया । 
थोड़ी ही दूर मुझे सड़क पर एक बड़ी भीड़ नज़र आई ...शायद कोई दुर्घटना घटी थी ... नजदीक जाकर देखा तो मै हैरान रह गया ...ये वही मोटर साइकिल सवार था जो थोड़ी ही देर पहले हमें ओवरटेक करके  आगे निकल गया था ... लोगो ने बताया ... ट्रक के निचे आ गया था .... चेहरा पूरी तरह कुचला जा चुका था ..मैंने उसकी पहचान उसकी मोटर साइकिल से की थी .... । 
मै जल्दी मै था सो बिटिया को स्कूल छोड़ कर वापिस घर आ गया ...लेकिन कानो में बिटिया का वो सवाल अब भी गूंज रहा था ...क्या वो भैया हम सबसे पहले पहुच जायेंगे ? 
क्या वाकई वो जल्दी में था ?    

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