तेरी ये दुनिया मुझे अब रास नहीं आती..

वो नारी ...हम सब अत्याचारी
बचा नहीं सकते इज्जत इनकी
इसी बात का वजन है मन पर भारी
सुन्दरता की मूरत कहा है हमने 
ये तारीफ़ है या श्राप उसको
पापी कहु या दरिन्दे उनको
जो रोक नहीं पाते खुद को
क्या यही मन्सा रही होगी उस परमात्मा की
जब  बनाया होगा दुनिया को उसने
क्यों  बनाया नारी को
मै आज तलक समझ नहीं पाया
मनोरंजन बन कर रह गई है वो आज
क्या यही चाहत रही होगी खुदा ही
देवी की पूजा और नारी का तिरस्कार
क्या इश्वर देगा हमें पुरस्कार
खून खोलता है आज हर कदम पर मेरा
अब ना हो कोई बलात्कार 
क्या हर नारी के चेहरे में तुम्हे
बहन बेटी या माँ ..नज़र नहीं आत़ी ...
कैसे पसीजता है दिल आपका
छाती क्यों नहीं फट जाती
उठा ले ऐ खुदा ... तेरी ये दुनिया मुझे अब रास नहीं आती ।

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