लघु कथा - पिताजी का स्कूटर


आज रमेश बहुत उतावला हुआ जा रहा था, उसका तीस साल पुराना स्कूटर हवा से बाते कर रहा था जो उसके पिता ने उनकी जॉब के समय लिया था और रमेश को पहली नौकरी मिलने पर तोहफे में दिया था |
रमेश को पुराना सेकंड हैण्ड स्कूटर कभी रास नहीं आया लेकिन एक ईमानदार सरकारी कर्मचारी पिता की मजबूरी वो भांप गया था सो नई नविली पल्सर जो वो अक्सर शर्मा मोटर्स के कांच वाले शोरूम में देखा करता था, उन ख्यालो का दमन कर उसने अपने पिता की भेट को अनमने मन से स्वीकार किया ....|
आज रमेश बेतहासा चेहरे पर तनावों का समंदर लिए इलाहाबाद की सडको पर अपने बड़े मगर आज भी दमदार स्कूटर को नियमो की अवहेलना करते हुए भगा रहा था .....|
थोड़ी ही देर बाद रमेश इलाहाबाद के सरकारी अस्पताल के एक ऑपरेशन थिएटर  के बाहर खड़ा था .... पूरा परिवार उसके इर्द गिर्द ही था.... माँ रोते हुए कह रही थी... "अब मै किसके सहारे ये पूरा परिवार चलाऊँगी, तेरे पिताजी ने सारी उम्र सारा बोझ खुद के कंधी पर ही उठाये रखा....." रमेश ऑफिस में था जब घर से पिता को दिल का दौरा पड़ने की खबर आई, वो सबके बाद में अस्पताल पंहुचा था ..... पिताजी से पुराना स्कूटर मिलने के दिन से ही रमेश उनसे उखड़ा उखड़ा ही रहता था ......पर आज माँ ने फ़ोन पर बताया कि तेरे पिताजी कई रातो से सो नहीं पाए , शर्मा मोटर्स के मेनेजर हरीश जी ने उन्हें बताया था कि तूने पिछले कई सालो में कई बार पल्सर गाडी की रेट पूछी है ...वो अपनी मजबूरियों और गरीबी को हर वक्त कोस रहे थे... और इसी उढेड बून में आज उनका ये हाल हो गया है .....|

डॉक्टर ने कुछ ही घंटो बाद जवाब दे दिया, पुरे परिवार में मातम का माहौल और मेरे मन में पश्चाताप का समंदर ..... तभी मेरे मोबाइल पर एक फ़ोन आया ...मेरे चेहरे ही हवाए उड़ गई... शर्मा मोटर्स के हरीश जी ने बताया कि पिताजी ने कल ही पल्सर गाडी की पूरी कीमत जमा करवा दी थी और आज मुझे शोरूम से अपनी गाडी उठानी है ......|

पिताजी ने ये रकम कहाँ से उठाई थी..ये राज पिताजी के साथ ही चला गया लेकिन मै अपने सीने पर पिताजी से अब तक नफरत करने का बोझ लिए सारी उम्र जियूँगा ...यही सजा है एक नालायक बेटे की |

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