सफलता ....कामयाबी....जीत.... बहुत सुंदर शब्द है.... हर कोई इनकी चाह रखता है.... लेकिन कितने लोग इनकी राह पकड़ते है....सफलता की मंजिल जितनी सुंदर है उतनी ही कठिन इसकी राह है.....हर कदम संभल कर ........फूंक फूंक कर रखना पड़ता है....लेकिन ज्यो ज्यो मंजिल के करीब पहुचते है... मन का विश्वास और होंसला और भी मज़बुत हो जाता है... |
मै इस किताब के ज़रिये आपको उसी मंजिल की तरफ ले जाऊंगा...आप बिल्कुल भी मत घबराना क्योंकि इस पुरे सफ़र में मै आपके साथ ही रहूँगा.... वो कहते है ना कि ....सफ़र अकेले नहीं कटता लेकिन अगर कोई हमसफ़र मिल जाए तो सफ़र बड़ा रुचिकर हो जाता है.... |हम सभी ने अपने जीवन में कभी ना कभी सफ़र तो किया ही है .... मंजिल तक पहुचने में सबसे बड़े मददगार रास्ते में लगे मील के पत्थर ही होते है.....जिन्हें देखकर हमें विश्वास होता है कि हम मंजिल के करीब पहुच रहे है....... हमारी निगाह लगातार उन मील के पत्थरों पर टिकी रहती है...... ज़रा सोचिये की रास्ते में आपकी आँख लग जाये.....यानि आपको नींद आ जाए.... आँख खुले और आपकी नज़र मील के पत्थर पर पड़े....पर ये क्या .....
मील का पत्थर तो कह रहा कि मंजिल अभी बहुत दूर है...... क्या स्थिति होती है उस समय...मन विचलित हो जाता है.... एक एक पल सदियों के समान लम्बा और कठिन लगने लगता है..मन कहता की काश इस समय के पंख लग जाये और में उड़ कर अपनी मंजिल पर पहुच जाऊ... लेकिन मेरे दोस्त, मंजिल को पाना इतना आसान नहीं है.... जब तक हर मील का पत्थर हासिल ना कर लो... मंजिल करीब नहीं आती... और सफलता की राह के वो मील के पत्थर इस प्रकार से है....
१. स्वः मुल्यांकन -
२. लक्ष्य निर्धारण -
३. धैर्य -
४. उपलब्धियों का जश्न -
५. सकारात्मक सोच -
६. अविराम प्रयास -
७. खुद पर विश्वास -
८. कठिनाइयों का ज्ञान -
इन सभी मील के पत्थरो को हम बारी बारी से समझेंगे...
१. स्वः मूल्यांकन -
सपने देखना कोई गलत बात नहीं है लेकिन उन सारे सपनो को हकीहत बनाने के लिए आप में उतनी योग्यता होनी भी तो होनी चाहिए...... मैंने सपने में देखा की आकाश में उड़ रहा हु.... चाँद पर उतर कर तीन लीटर दूध लिया और सितारे की सवारी करता हुआ अपने घर यानि सूरज पर लौट आया.... ये सपना था लेकिन अगर मै ये चाहू की मेरा ये सपना हकीकत बन जाये ...तो क्या ये हो सकता है...नहीं.... हम इंसान है...हमारी कुछ सीमाए है जिनमे रह कर ही हमें अपना जीवन बिताना होता है..... इनके बाहर जाने का प्रयास करोगे तो लोग पागल कहेंगे...
एक इंसान को सफल होने के लिए अपनी सम्पूर्ण समताओ का भली भांति ज्ञान होना चाहिए.... यही स्वः मूल्यांकन कहलाता है....... हमें कोई जल्दी बाज़ी नहीं है सफल होने की....आप पूरा पूरा समय लीजिये.... भरपूर चिंतन कीजिये.... और खुद को जानिए..... हमारी यही सबसे बड़ी कमजोरी है की अपने जीवन में दुनिया को ज्यादा देखते है और आइना कम..... आप चाहते है की दुनिया आप को जान जाए तो पहले आप खुद को जान लीजिये......
खुद से प्यार कर लो....दुनिया आपसे खुद - ब - खुद प्यार करने लगेगी.... एक स्त्री आइना देखती है...बनती सवरती है.......खुद पर इतराती है..... तो उसका पति भी उससे प्यार करता है.... अगर वो स्त्री खुद को ना सवारे, तो शायद उसका पति भी उससे दूर दूर रहेगा.... यही दुनिया का दस्तूर है..... खुद को हमेशा तैयार तैयार रखो.... दुसरो से श्रेष्ठ रखो.....तो दुनिया आपके कदमो में रहेगी नहीं तो सिर पर नाचेंगी....
एक किसान अपने चार पुत्रो के साथ एक गाँव में रहता था ....उसके चारो पुत्र उसके काम में उसका हाथ बंटाते थे...उनका जीवन बीत रहा था....एक दिन किसान ने सोचा ..."मेरी उम्र काफी हो गई है और मै अब ज्यादा दिन नहीं जिऊंगा...क्या मेरे चारो पुत्र मेरे बाद अपना काम सुचारू ढंग से चला पाएंगे या उनको परेशानियों का सामना करना पड़ेगा..."
किसान ने उन चारो को आजमाने का निश्चय किया...चारो पुत्रो को अपने पास बुलाया और कहा .....आज तुम्हे मेरा एक काम करना है....जैसा की तुम सब जानते हो...हमारे गाँव में एक बहुत बड़ी पहाड़ी है.....और उस पहाड़ी के दूसरी तरफ एक नदी बहती है.,...चारो पुत्रो से सहमती में सिर हिलाया....किसान ने फिर कहा....उस नदी के बीच में एक छोटी सी चट्टान है...जिसे हम लोग काली चट्टान कहते है..... चारो पुत्रो ने फिर से सहमती जताई....किसान ने फिर कहा.....उस चट्टान पर एक रेगिस्तानी पोधा लगा हुआ है जिसके पत्तो से एक बहुत ही अच्छी दर्द निवारक औषधि का का निर्माण किया जा सकता है...ये बात अब तक मेरे सिवाय किसी को नहीं पता...तुम चारो जाओ और उस पोधे के पत्ते ले आओ....चारो पुत्र हुक्म सुनते ही जाने लगे.... किसान ने उन्हें रोका और कहा...एक बात का ध्यान रखना शाम पढ़ते ही उस पोधे के पत्ते मूरजा जाते है इसलिए तुम्हे सूर्यास्त से पहले ही उन पत्तो को लाना होगा ........ चारो पुत्र अपनी यात्रा पर निकल पड़े....पहाड़ी पर पहुच कर चारो ने निचे देखा तो शीतल और शांत मदमस्त बहती हुई वो नदी नज़र आई, मंजिल के इतना करीब पहुच कर वो सभी बहुत खुश थे.... तभी उन्होंने देखा कि आगे जाने का तो कोई रास्ता ही नहीं है.. सिवाय एक रास्ते के जो कि जोखिम से भरा हुआ था....एक बहुत ऊँची पहाड़ी से कूदने के सिवाय उनके पास कोई चारा नहीं था....समय भी तेज तेज भाग रहा था..... तीन भाइयो ने आव देखा ना ताव ....कूद गए पहाड़ी से....... पिता पर अपना प्रभाव जो दिखाना था....प्रभाव दिखा भी दिया लेकिन उन्होंने पिता पर नहीं बल्कि गहरी चोटों ने उनके पुरे बदन पर..... घायल पड़े वो तीनो दर्द से तड़प रहे थे....
चौथा पुत्र जरा रुका और सोचा .... ये पहाड़ी काफी ऊँची है और मेरा शरीर इतना सुद्रढ़ नहीं कि मै इतनी उचाई से कूद पाऊ.......वो बैठा बैठा सोच रहा था कि तभी उसे एक उपाय सुझा ....वो धीरे धीरे बैठे बैठे ही सरकने लगा....और सरकता हुआ वो निचे पहुच गया .......समय काफी लग गया सो आधी रात हो चुकी थी....उसने अपने तीनो भाइयो को संभाला जो वहा घायल अवस्था में तड़प रहे थे....
किसी प्रकार सुबह तक प्रतीक्षा की....सुबह होते ही वो तैर कर काली चट्टान के पास गया और पत्ते तोड़े ..... और नहीं के बाहर लौट आया.... सबसे पहले उसने कुछ पत्तो को रगड़ कर तीनो भाइयो के ज़ख्मो पर लगाया.... कुछ ही देर में वो चलने लायक हो गए .... चारो अपने घर लौट आये और पिता को सारा किस्सा सुनाया....
किसान ने उन्हें समझाया ..... जोश ....जुनून....जवानी में अक्सर सभी के पास होते है लेकिन जोश में होश खो बैठना ..... समझदारी नहीं...... किसी भी काम को करने से पहले खुद की समताओ को जान लेना... पहचान लेना बेहद जरूरी होता है..........ये सीख सिर्फ उन चार जवानो के लिए नहीं बल्कि आप तमाम जवानो के लिए है........और यही हमारी मील का पहला पत्थर है जो आपको सफलता के थोडा करीब ले जाएगा.....
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