मै ऐसा क्यों हु....

दुनिया बहुत सुंदर है... सुंदर पेड़ पौधे, सुंदर भवन, सुंदर सुंदर मंदिर , मस्जिद, गुरूद्वारे, चर्च.... सब कुछ सुंदर ही सुंदर.... इन सब के बिच मेरा मन एक दिन उदास हो गया... फिल्म हीरो सलमान खान को देखा तो ... मन में आया ..वाह क्या डोले सोले है... क्या चिकना चेहरा है... पैसा,गाड़ी, शोहरत, चाहने वालो की भीड़ ......... जिसकी एक झलक पाने को लाखो करोडो बेक़रार रहते है... सुना है.. उसे देखने आने वाली भीड़ कही बार दंगे फसाद भी कर देती है... इतना प्यार मिला है उसको... उसको की क्या.. ऐसे कितने ही बड़े बड़े फिल्म स्टार्स है.. जिन्हें लोगो का प्यार मिला है...
आईने मै खुद को देख था... ना कोई खास शक्ल सूरत ... ना कोई खास नाम और ना ही इतना पैसा ........ कुछ भी तो नहीं है मेरे पास ... मुझसे ज्यादा तो हर किसी के पास है......
बहुत ही निराश हो चूका था ...मै उस दिन... मेरे शब्द मेरी कलम ... सबसे मुह मोड़ लिया था... मेने कुछ भी नहीं लिखा....
क्या फायदा ऐसे लिखने का जिससे कुछ नहीं मिलता... ना कोई जानता है ... ना पैसा... , ऊपर से उस उपर वाले ने भी जले पर नमक छिड़क दिया... ऐसी शक्ल सूरत दी की... औसत बन कर रह गया हु...
दिन निकलते रहे और मै उदास के उदास ही था ... पुरे बारह दिनों तक मेने कुछ नहीं लिखा... तेरहवे दिन मेरी पत्नी मेरे पास आई और बोली .............. आज शुभ दिन है... कहते है कि अगर आज के दिन दान दिया जाए तो बहुत पुण्य मिलता है... उदास था .... किसी काम में मन नहीं लग रहा था... सोचा चलो दान पुण्य ही कर लेते है... शायद ऊपर वाले को थोडा रहम आ जाए और कुछ शक्ल सूरत ... कुछ दौलत शोहरत मिल जाए.......
हम सुबह सुबह ही तैयार होकर अनाथ आश्रम पहुच गए... छोटे छोटे प्यारे बच्चे .... शक्ल सूरत में बहुत अच्छे .... लेकिन किस्मत बहुत ही बुरी... पैदा होते ही माँ बाप का शय उठ गया ....और अनाथ का लेबल माथे पे लग गया..... मेरी आखो में आंशु थे लेकिन छलक कर बाहर नहीं आ पाए... शायद में उन बच्चो का हौसला बढाना चाहता था... अगर में रो गया तो.... उनहे कौन संभालेगा .......
वहा खाने पिने कि सामग्री वितरित करने के बाद हम एक व्रह्दाश्र्म में गए... बुद्दे बुद्दे कंधे जिनसे खुद का वजन नहीं उठता .... भारी भारी वजन उठा रहे थे.... क्यों कि ... दुनिया में रहना तो काम कर प्यारे.... दिन भर मजदूरी.... और फिर कही से खेरात में मिली खाने पिने की वस्तुए... बच्चो ने कूड़ा करकट समझ कर फेक दिया... सस्ते युज एंड थ्रो बोल पेन की तरह ........ जिन माँ बाप ने जवानी तक उनका भार उठाया ... वो माँ बाप बेकार हो गए.... क्यों?.... क्यों कि अब बेटे जवान हो गए.... उनका मतलब निकल गया..........
वहा दान देने के बाद.... कोड़ी खाने गए... शक्ल सूरत की चाह खत्म हो चुकी थी.... मुझे अपना चेहरा दुनिया का श्रेष्ठ चेहरा लगने लगा... मेरे पास मेरा परिवार है... माँ बाप है.... मेरे बच्चे है... मेरी पहचान है.............. मेरी दौलत मेरे लिए काफी है .....ज्यादा.की लालच छू हो गई...........
हम घर लौट आये......... वो अपने काम में लग गई.......... में अपने कमरे में बैठा रो रहा था............ दुनिया में बहुत दर्द है..... दुनिया इतनी सुंदर भी नहीं है.............
आईने में खुद को देखा तो मुझे अपने चेहरे की जगह... वो अनाथ... वो बेसहारा बुजुर्ग ..... और वो बीमारी से झुझते चेहरे नज़र आए........... मैंने आखे बंद कर ली . मैंने आखिर खुद से ये सवाल किया ही क्यों..........
मै ऐसा क्यों हु

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