वो नीव का पत्थर ही है...

आज मजदूर दिवस के अवसर पे मैंने कुछ लिखा नहीं .... मेरे एक मित्र ने मुझसे पूछा, .....हमें  मजदूर दिवस तो याद है... लेकिन कितने मजदूरों को जानते है या जानना चाहते है.... शायद ....कोई नहीं...
आदर्श बनने की कोशिश  तो हर कोई करता है... लेकिन आदर्श बनना इतना आशां नहीं... बहुत बड़ी बड़ी बाते करने वाले बहुत छोटे लोग देखे है मैने.... मजदूर क्या होता है, मै बताता हु आपको.... उची उची ईमारत को देखकर हम अक्सर कहते है... वाह क्या ईमारत है... इसके कांच , इसका मार्बल , इसकी बालकनी... हर चीज की तारीफ करते है... लेकिन ये कोई नहीं कहता की... वाह क्या मजबूत नीव है... 
ईमारत की वो मजबूत नीव ना होती तो शायद तारीफ सुनने के किये वो ईमारत ही ना होती...
वो मजबूत नीव ही.... मेरा मजदूर है.... दिन रात... धुप छाव.... सर्दी गर्मी... सब कुछ सहन कर ईमारत को तारीफ के लायक बनाने वाला ... वो मजदूर ही है... लेकिन उसकी तारीफ कोई नहीं करता..........
दुसरो की जिन्दगी सुंदर महलो में गुजरे इस लायक बनाने वाले की जिन्दगी बेतरकीब गुजरती हुई.. कब खत्म हो जाती है ... कोई नहीं जनता........... मेरा सलाम है... उन सभी मजदूर भाई बहनों को...
कहते है... लाश एक मजदूर की सडती रही, चींटिया उसका कफ़न बन गई.... जिन्दगी जिसके लिए दर्द थी, मौत उसकी दावा बन गई....

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