हम जो चाहते है, वो मिलता क्यों नहीं.......?


मेरे छोटे भाई से बात हो रही थी... वो मुझे पूछ रहा था... भाई साहब, आखिर किस्मत  हम पर मेहरबान क्यों नहीं होती ... हम जो कुछ भी चाहते है वो मिलता क्यों नहीं...
उसका सवाल सिर्फ उसका ही नहीं बल्कि हम सभी का सवाल है...हम सभी अपनी अपनी किस्मत से ना खुश है ... हमें लगता है कि हम जो कुछ भी चाहते है वो हमें नहीं मिलता....
एक छोटी सी कहानी सुनाता हु... एक गाँव  के चोराहे पे एक पहलवान ने डंके कि चोट पे एलान किया कि में भारी  से भारी वजन भी उठा सकता हु........ कोई भी सख्स अपनी इच्छा से चाहे जितना वजन मेरी पीठ पर डाल दे .....
लोग  वहा आ रहे थे और भारी भारी वजन उस पहलवान के कंधो पर डाल रहे थे........ उन सभी का मकसद एक ही था... कि किसी भी तरह वों  पहलवान अपनी हिम्मत खोदे और हार जाए....... और आखिर वो पहलवान हार गया... अपनी किस्मत को कोसता हुआ वहा से चला गया...... यहाँ भी किस्मत ही बुरी साबित हुई...
अरे जान बुझ कर अपने पैरो पे कुल्हाड़ी मारोगे तो पैर पर चोट तो आएगी ही ना... फिर किस्मत भला क्या कर सकती है........ हम जानबुझ कर अपनी समता से बहुत अधिक कार्य करने  का संकल्प ले लेते है और नाकामयाब होने पर किस्मत को दोष देकर खुद को बेगुनाह साबित कर देते है.......
किसी भी काम को करने से पहले स्वः मुल्याकन बेहद जरुरी है ... अपनी समताए और साधन दोनों को भली भाति समझ लेना आपको आगे के कदम तय करने में सहायक होते है...
किस्मत पर यकीं और अपने लक्ष्य पर लगातार प्रहार दोनों जरुरी है..
एक छोटी सी कहानी और सुनाता हु....
एक इंसान एक उची पहाड़ी से गिर गया... घबराहट के मारे उसने राम राम जपना शुरू किया... राम ने उसकी आवाज़ सुनी और उसे बचाने के लिए आगे बड़े .......... तभी उस इंसान ने हमारे देश के राजनेताओ की तरह पार्टी बदल  ली......अगले ही पल वो शिव शंकर को याद कर रहा था... राम जी वापिस लौट गए... इससे पहले की भगवन शिव उसकी मदद करने आते उसने फिर पार्टी बदल ली... वो पार्टी बदलता रहा....बदलता रहा ... और आखिर ................ धरती माँ की गोद आ गई... जमीं से टकराकर उसने दम तोड़ दिया........... मरते मरते उसने एक ही बात कही... "हाय रे किस्मत..............."
यहाँ भी किस्मत ही बदनाम हुई............ अरे एक बात पर कायम तो हम नहीं ............और गलती किस्मत की......
हम जो कुछ भी चाहे... हमें मिल सकता है... ना मुमकिन कुछ भी नहीं..... बस जरुरत है...
अपने लक्ष्य पर अखंड विश्वाश और उसे पाने के लिए निरंतर प्रयास की...........

जब से चला हु मंजिल पर नज़र है मेरी,
मील का पत्थर नहीं देखा मैने.............

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