आज गर्मी बहुत है.....


मै  आज के मौसम की बात नहीं कर रहा हु... क्यों कि मै वैसा नहीं हु जैसे कि हमारे वो अजनबी मित्र थे...
उस दिन मै एक डॉक्टर के क्लिनिक के बाहर खड़ा डॉक्टर की प्रतीक्षा कर रहा था... गर्मी का मौसम और उस पर किसी का इंतज़ार .... सोने पर सुहागा.... नहीं नहीं यु कहू की गरम खोपड़ी पर अंगारे .....
तभी पास खड़े एक सज्जन ने बातचीत शुरू की.. हम अक्सर बातचीत शुरू करने के लिए वो ही सवाल पूछते है जिसका जवाब हमें पहले से पता होता है...... श्री मान जी बोले... आज गर्मी बहुत है ना...मैंने उनकी तरफ ध्यान से देखा... दुबले पतले इंसान .. हाथ मै बंद छाता ....और चेहरे पर एक गहरे सवाल का भाव...
हम  सभी यही करते है... समाधान हाथ में होता है लेकिन समस्याओ को बातचीत का मुद्दा बनाकर टाइम पास करते है...उन सज्जन ने भी यही तो किया... छाता हाथ में था... लेकिन उसे खोलने की बजाय मुझसे गर्मी के बारे में चिंता जता रहे थे......केवल गर्मी का मुद्दा ही नहीं ...हमारे पास टाइम पास के लिए और भी बहुत से मुद्दे है... राजनेता बहुत बेईमान हो गए है..... सरकारी अफसर बहुत पैसा खाते है...... महंगाई बहुत बढ गई है... इत्यादि 
लेकिन  कितने लोग है जो इन्हें बहस की बजाय चिंता का विषय मानकर इनके समाधान की और कदम बढ़ाते है ...
शायद ना के बराबर होगी वो संख्या...
 इतना ही नहीं ... हमारी निजी जिन्दगी मै झांक कर देखो तो ऐसे बहुत से टाइम पास के मुद्दे मील जाएँगे... कोई अपनी असफलता को बार बार सबको सुनाता है तो कोई अपनी दुखो की पिटारी खोल कर तैयार रहता है............
अरे मै कहता हु क्या जरुरत है ... समस्याओ को इस कदर पब्लिक इश्यु बनाने की ... लोग जला हुआ घाव देखकर सहानुभूति नहीं बल्कि उस पर नमक डालना ज्यादा पसंद करते है.....
इसलिए मै कहता हु..
जितनी भी समस्याए आए, एक कागज़ पर लिख लो
"बस इतनी सी"  कह कर सब कुछ भुला दो...
और चिंता से चिता तक जाने की बजाय 
इन  चिन्ताओ को हमेशा के लिए सुला दो...

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