क्या सोच रहे है...यही ना कि मै खुद अपनी तारीफ कैसे कर रहा हु...नहीं आप गलत समझ रहे है...मै तो सिर्फ आपको ये बता रहा हु कि मै कैसे प्रेरक बन गया...
बचपन से एक सपना था कि मै औरो के लिए प्रेरक बन जाऊ.... दुनिया मुझे और मेरे काम को देखे और उससे कुछ सीखे.... लेकिन मेरा दुर्भाग्य तो देखो ......मेरे आस पास का माहोल, साधन और मेरी समताए ... सभी इस ख्वाइश की संभावनाओ को नकार रहे थे.... धरती पर रह कर सूरज को छूने की तमन्ना ......क्या मुमकीन है ........ यही मेरे साथ हो रहा था.... मै हताश था ....उदास था......निराश था...... पर फिर भी मन के किसी कोने में एक "काश" था....कि काश मेरा सपना पूरा हो जाए....
मेरा काम में मन नहीं लग रहा था.... यही सोच कर कि मै कुछ नहीं कर सकता ...मेरा होंसला टूट रहा था... मैंने फिर भी कई बार कोशिश की, बार बार नया व्यापार शुरू किया....लेकिन हर बार असफल रहा... आखिर मैंने घुटने टेक दिए.......
एक दिन चोराहे से गुजर रहा था.... तभी कान में एक आवाज़ आई.... एक माँ अपने बेटे को डांट रही थी "मन लगा कर पढाई कर .....वरना तू भी" ..... वो माँ मेरा उदाहरण देकर अपने बेटे को डरा रही थी........ में मुस्कुराया .......में तो प्रेरक बन गया.....|
धरती पर दो तरह के इंसान होते है...सफल और असफल ... लेकिन दोनों ही सूरत मै हम प्रेरक तो बनते ही है....बशर्ते हम कोशिश करे......... अगर हम बिना कुछ किये हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे तो ना सफल होंगे और ना ही असफल.... तो फिर दुनिया हमसे क्या सीखेगी....
वो कहते है ना कि....
गिरते है सह सवार ही मैदाने जंग मै,
वो त्रिफ्ल क्या गिरेंगे जो घुटनों के बल चलते है.....
dear sir
जवाब देंहटाएंI am also agree with you,I am make like your attitude, I want make but how to start I don't know.