आचार्य महाप्रज्ञ कल दोपहर इस दुनिया से कूच कर गए... और अपने पीछे लाखो दुखी मन छोड़ गए...
आचार्य ने कहा था..."बुराइयों का अंत होने तक मै गाँव, नगर, शहर में लोगो के बीच अपने संघ के साथ पहुचता रहूँगा| चरित्र निर्माण की बात कहता रहूँगा| व्यक्ति के सुधरने का इंतज़ार करता रहूँगा |"
क्या सभी व्यक्ति सुधर गए..... नहीं ना... तो फिर आचार्य हमारे बीच से चले क्यों गए..... नहीं आचार्य कही नहीं गए है... उनका तबादला हो गया है उनकी पदोन्नति हो गई है.....अब वो हमारी नजरो के सामने नहीं बल्कि हमारे मन मस्तिस्क में विराजेंगे..
मि. इंडिया फिल्म में अभिनेता अनिल कपूर अद्र्श्य हो गया था... उसे देखने के लिए एक विशेष प्रकार का चश्मा काम में लिया गया... ठीक उसी प्रकार हमारे पूज्यनीय आचार्य भगवन मि. इंडिया बन गए है.... उन्हें देखने के लिए अब हमें मन की आँखों का इस्तेमाल करना होगा.... जिसका मन निर्मल होगा उसे प्रभु अवश्य नज़र आयेंगे...
आचार्य महाप्रज्ञ के उत्तराधिकारी आचार्य महाश्रमण ने अपने सन्देश में कहा कि "तेरापंथ का दशम सूर्य अद्र्श्य हो गया..." ये क्या .... सिर्फ तेरापंथ... क्या आचार्य का आशीर्वाद समाज विशेष था .... क्या आचार्य का प्रवचन किसी एक समाज के उत्थान के लिए था... नहीं......आप अपने घर के बाहर लैम्प लगवाते ताकि आपके घर के बाहर उजाला रहे... ये आप मानते कि वो लैम्प आपका है.... लेकिन वो लैम्प अपनी रौशनी को आपके घर तक सिमित नहीं रखता है...अपनी समता के अनुसार वो लैम्प अधिकतम दूरी तक प्रकाश पहुचने का प्रयत्न करता है...
आचार्य महाप्रज्ञ भी तेरापंथ समाज के वो लैम्प है जो ना सिर्फ तेरापंथ समाज बल्कि हर एक व्यक्ति हर समाज का आदर्श बन गए थे ..... आम जीवन में जब आम आदमी मरता है तो उसे हम जीवन का अंत मान लेते है... और धीरे धीरे हम सभी उसे भूलने लगते है.... लेकिन ऐसे महान संत जब मानव देह त्यागते है ..... तो वो जीवन का अंत नहीं बल्कि एक नए जीवन की शुरुआत कहलाती है.... वो हर एक मानव के मन मस्तिस्क में समां जाते है... सदियों तक उनकी चर्चा होती है.... सामने ना होकर भी वो लाखो लोगो को प्रोत्साहित करते रहते है...
जहा जवान और बूढ़े सभी वासनाओ में लिप्त रहते है वही मात्र ग्यारह साल की आयु में दीक्षा लेकर मुनिवर ने धर्म की राह पकड़ ली ...... खेलने कूदने की आयु में लाखो को त्याग का पाठ पढ़ाना प्रारंभ कर दिया ...
हम सभी को उनके जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए .... उनके जितना त्याग ना सही पर आज हमें कोई एक त्याग तो करना ही होगा....
वाकई धर्म के अखाड़े में वो सरदार थे ...... और सरदार अपने शहर यही सरदार शहर आकर ही इस भौतिक दुनिया से मुक्त हुए....
आचार्य महाप्रज्ञ .... तुम्हे कोटि कोटि वंदन...
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