दोस्तों, कैसे हो ?
लम्बे समय तक आपसे दूर रहा....इसके लिए माफ़ी चाहूँगा....वजह थी ...दुनियादारी....कहते है ना कि दुनिया बहुत छोटी है ...शायद यही वजह है कि परेशानियों ने मुझे ढूंढ़ ही लिया .... खैर छोडो इन बातो को.... बड़े बड़े शहरो में ऐसे छोटी छोटी बातें तो होती ही रहती है...|
आज बैठा बैठा सोच रहा था कि हम सभी ज्यादा पाने के लिए हर वक्त लगे रहते है...ज्यादा नाम....ज्यादा पैसा....ज्यादा आराम...."ये दिल मांगे मोर "............लेकिन ज्यादा कितना ?
शायद ही किसी के पास इस सवाल का जवाब होगा.... लक्ष्यहीन लक्ष्य है ये मोर ...........जिस प्रकार नाचता हुआ मोर यानि मयूर सब को अच्छा लगता है ठीक उसी तरह हमारा ये मोर भी सब को बहुत अच्छा लगता है.... "एवरी मोर गिव्स अस मोर मज़ा" |
भाई इस मोर का तो कोई अंत है नहीं लेकिन इस मोर की भागदौड़ में एक दिन हमारा अंत जरुर हो जाता है.... और फिर सारे मोर एकदम से लैस हो जाते है यानि कम हो जाते है |
किसके लिए जुटा रहे हो ये मोर....अपने लिए या अपनों के लिए...?
बचपन सबका सपना होता है और शायद यही बस अपना होता है.......बचपन ख़त्म तो अपना कुछ नहीं ...बस जो भी है अपनों का है...|
हम जो कुछ भी करते है....कमाते है.... जोड़ते है....बचाते है.....सब अपनों के लिए ही होता.....वरना एक इंसान को क्या चाहिए ......पेट भरने के लिए दो वक्त का खाना और सिर छुपाने के लिए एक कमरे का ठिकाना ...........|
हर मोर अपने लिए नहीं बल्कि अपनों के लिए होता है...तो दोस्तों मेरी एक छोटी सी लेकिन बहुत काम की सलाह हमेशा याद रखना कि " इतना कमाओ कि पेट भर खा सको और इतना बचाओ कि बे फिक्र जा सको......|
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