कहते है कि अगर मंजिल तय हो तो रास्ता आसान हो जाता है.....और अगर मंजिल पहले से तय ही ना हो और हमें बस ये कहा जाए कि चलते जाओ.....बस चलते ही जाओ......मंजिल आ ही जायेगी..तो ..... मन पुरे रास्ते अनमना सा रहता है...विचलित रहता है......एक सवाल हर समय उठता रहता है......और कितना चलना है.....?
लेकिन यहाँ तो मामला उल्टा है....मंजिल तय है फिर भी हर कोई हर समय चिंतित है.. विचलित है......किस बात से ?
चल रहे है लेकिन बे मन से.......|
हम सब की मंजिल पहले से तय है......हर पुरानी हिंदी फिल्म में कही ना कही.......किसी ना किसी गाने में इस बात को याद दिलाया गया है.....ताकि फिल्म की मस्तियो में डूबकर आप वास्तविकता को ना भूल जाओ.........दुल्हन से तुम्हारा मिलन होगा, रे मन थोडा धीर धरो........ या फिर...... मै पल दो पल का शायर हु......या फिर......एक दिन बिक जाएगा, माटी के मोल, जग में रह जायेंगे, प्यारे तेरे बोल ........ लेकिन सारे प्रयास व्यर्थ हो जाते है......और हम बार बार भूल जाते है कि मंजिल तय है......दोस्तों जब मंजिल तय हो जाए तो रास्ता रंगीन हो जाना चाहिए.....जीवन के सफ़र में हम सब की मंजिल तय है........एक दिन सब को......तो फिर मायुश क्यों होना ....छोटी छोटी बातो पर व्यर्थ परेशान क्यों होना........कुछ खो गया तो परेशान....कम मिला तो परेशान.........नहीं मिला तो परेशान........दिल टुटा तो परेशान......घर छुटा तो परेशान.......मुक्कदर फूटा तो परेशान......दोस्तों जब भी कूछ गलत हो तो अपने मन में सिर्फ एक सवाल करना कि अगर ये गलत नहीं होता तो क्या होता ? अंत फिर भी तय है........|
दोस्तों आप सिर्फ रास्ते बदल सकते है....मंजिल नहीं ...... रास्ते में लाख कमा लो....लाख गवा लो......मंजिल तो सब की तय है...तो फिर चिंता कैसी.....मजे करो ना.....|
जिन्दगी तो एक फिल्म की तरह है.......तीन घंटे के पैसे दिए है....पुरे पुरे वसूल कर लो.......थिएटर से बार आकर फिर ये मत कहना.....कि मज़ा नहीं आया.....|
मंजिल तो वाकई में तय है..
जवाब देंहटाएंलोग बस भेड़ चाल में चले जा रहे हैं.. विडम्बना भारी है और इसलिए दुःख भी..
अगर लोग इस बात को समझ जाएँ कि जिंदगी एक ही है और इसे मस्ती में काटनी है तो बात ही क्या रह जाएगी..
अच्छी पोस्ट...
आभार