मै जैन हु....अहिंसा मेरा धर्म और क्षमा मेरा गुण...यही कहा था मैंने...लेकिन क्षमायाचना के महान पर्व पर मै कुछ अलग महसूस कर रहा हु... कुछ अलग देख रहा हु |
रोजाना जिनसे हँसकर बातें किया करता हु वो सभी मुझे आज सॉरी (मिच्छामी दुक्कडम) कह रहे है....किस बात के लिए....ये तो शायद खुद उन्हें भी नहीं पता होगा...|
लेकिन एक सज्जन पता नहीं किस बात पर हमेशा मुझसे खफा रहते है और आज भी जब उनसे सामना हुआ तो चेहरे पर वही जानी पहचानी अक्खड़ थी...
लेकिन एक सज्जन पता नहीं किस बात पर हमेशा मुझसे खफा रहते है और आज भी जब उनसे सामना हुआ तो चेहरे पर वही जानी पहचानी अक्खड़ थी...
मै मुस्कुराया लेकिन वो अभी भी उसी अक्खड़ में तने हुए थे....जैसे मै उनके त्यौहार का हिस्सा नहीं हु...|
जैन भाइयो...क्षमायाचना दोस्तों को सॉरी कहने का अवसर नहीं अपितु...दुश्मनों को सॉरी कहकर दोस्त बनाने का पर्व है.....जिसे कभी कुछ कहा ही नहीं... उससे माफ़ी मांगने का क्या औचित्य ?
माफ़ी राम को लक्ष्मण से नहीं बल्कि रावण से मांगनी चाहिए....
माफ़ी कृष्ण को बलराम से नहीं बल्कि कंस से मांगनी चाहिए....
माफ़ी मन मोहन सिंह को सोनिया से नहीं बल्कि अन्ना जी से मांगनी चाहिए |
माफ़ी उनसे मांगो जिनका जाने अनजाने में कभी दिल दुखाया हो.... |
तभी सही मायनों में हम इस क्षमायाचना पर्व को मना पायेंगे.....|
माफ़ी राम को लक्ष्मण से नहीं बल्कि रावण से मांगनी चाहिए....
जवाब देंहटाएंमाफ़ी कृष्ण को बलराम से नहीं बल्कि कंस से मांगनी चाहिए....
माफ़ी मन मोहन सिंह को सोनिया से नहीं बल्कि अन्ना जी से मांगनी चाहिए |
i like that.