जिन्दगी इतरी माड़ी कोनी...

अरे भाई बहुत टाइम बाद लिखने बैठा हु .... कम से कम तालिया तो बजा दो.... लम्बे समय तक आपसे दूर कैसे रहा, ये सिर्फ मै ही जानता हु । काम की परेशानी इतनी ज्यादा बढ गई थी कि और कुछ भी नहीं सूझ रहा था तो आपसे बातें करने का तो सवाल ही नहीं उठता ।
अक्सर हम सभी यही करते है .... परेशानी में अपने सारे काम काज भूल जाते है... परेशानी को मुख्य अतिथि मान कर उसी की सेवा में दिन रात लगे रहते है... उसके सिवाय कुछ और नज़र ही नहीं आता ... सो एक आम आदमी होने के नाते मैंने भी यही किया...... लेकिन कल मै आम आदमी से खास आदमी बन गया... क्यों कि मेरी सारी चिंताए मेरी खुशियों के सामने फीकी पड़ गई ।
मैंने अपने जीवन की खुशियों और गमो का अनुपात देखा तो जाना.. मेरी खुशिया मेरे गमो से कई ज्यादा है.. सो मै अपने गमो को हरा कर आपसे बात कर रहा हु...;आप भी अगर अपने गमो को हराना चाहते हो तो मेरी इन पंक्तियों को दोहराते रहिये....खुशिया थारी मोकली
ने गम थारा छोटा
जिन्दगी इतरी माड़ी कोनी
लखण थारा हिज खोटा
( यहाँ मोकली माने बहुत सारी, माड़ी माने बुरी और लखण माने आदते )
अगर पसंद आये तो दाद दीजिएगा..।

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