दुनिया से बाहर की ढेरो दुनिया ...

दिन भर दफ्तर में काम करने के बाद जब शाम को घर लौटता हु तो शायद ही पूरी तरह लौट पाता हु ... या यु कहु कि तन से लौट आता हु पर मन वही कही छुट जाता है और घर आकर भी दफ्तर को भूल नहीं पाता हु  ... मेरी ये आदत या परेशानी आप सभी से मिलती जुलती है ... हम अपने काम से बाहर आ ही नहीं पाते और काम के तनाव का रोना लेकर बैठे रहते है  ... परिवार के बीच होकर भी हम परिवार से कोसो दूर रहते है  ... मेरी बीवी अक्सर कहा करती है  ... ऑफिस से बाहर आओ  ...ऑफिस से बाहर आओ  ... लेकिन शब्दों से खेलने वाला मै उसके शब्दों का भावार्थ कभी समझ ही नहीं पाया  ... कल रविवार को अपने दो बच्चो के साथ पार्क में टहल रहा था  ... बच्चे खेल रहे थे और बीच बीच में मेरी मौजूदगी भी आजमा रहे थे ...पापा पापा  ...अचानक बच्चो की गेंद मुझसे आकर टकराई  ... एक पल के लिए चेहरे पर गुस्सा छा गया  ... बच्चे डरते डरते बोले  ... पापा  ... सॉरी  ... वो  ...  वो  ... गलती से  ... में मुस्कुराया  उनके ये मासूमियत से भरे शब्द उस दिन बहुत ही सुहावने लग रहे थे  ... मै ऑफिस से बाहर आ गया था  ... और बच्चो की शरारतो में मुझे अपना बचपन नज़र आ रहा था । मैने गेंद को हाथ में लेकर कुछ पल देखा ... इतने सालो में गेंद बिल्कुल  नहीं बदली ... आज भी गोल ही है तो गेंद से खेलने वाला मै अचानक से इतना कैसे बदल गया  ... उस दिन मै बच्चो के साथ खूब खेला  ...तभी मेरे मोबाइल पर घंटी बजी  ... बच्चे समझ गए कि अब मै  फिर से अपने ऑफिस की दुनिया में जाने वाला हु लेकिन मै उस दुनिया से बाहर आ चुका था  ... मैंने घंटी काट दी और मोबाइल को ऑफ कर दिया  ... बच्चे बहुत खुश हुए और मै  भी  ।

दोस्तों, काम काज की दुनिया से बाहर आओ और देखो ढेरो दुनिया आपका इन्तजार कर रही है  ... कभी अपनी दुनिया को भुला के औरो की दुनिया में खुशिया भर के देखो  ... आपकी दुनिया खुद ब  खुद खुशहाल हो जायेगी ।

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