मिटटी का टीला ....

कल देखा मैंने
एक मिटटी का टीला
सफ़ेद चमकीला धुप में खिला
बाकी टीलो से छेल छबीला
शांत गंभीर ...अपने ख्यालो में खोया हुआ
भविष्य से अन्जान ...
अचानक चला ..हवाओं का काफ़िला...
रेत को बाहों में समेटे ...
कही दूर ले चला ...
अब एक नहीं था मेरा वो मिटटी का टीला
उसका वजूद था अब मिलो तक फैला ..
अब कभी नहीं दिखेगा…
वो मिटटी का टीला ... शांत ..गंभीर भीड़ से अकेला
आज मुझे इससे एक सबक मिला
जीवन क्षण भगुर है ...क्या इसका मोह करे हम
तन का रंग चाहे कोई भी हो
आत्मा को कोई रंग नहीं मिला
लाख भगा लो जीवन के घोड़े ..
एक दिन आयेगा ...फिर वो हवा का काफिला .
और ख़त्म होगा ..
हमारे जीवन का भी सिलसिला ।
- विसंक जोधपुरी


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