मरै ने मल्लार गावै....

इस राजस्थानी कहावत का तात्पर्य है " मरते वक्त भी गीत गा रहे है....." वैसे तो ये बहुत अच्छी बात है कि आप मरते वक्त  भी गीत गा सकते है क्यों कि मौत सिरहाने खड़ी हो तो..... गीत याद नहीं आता.....किसी ने कहा है कि पैदा हुए तब रो लिए अब तो मरते वक्त भी गाएंगे.......... लेकिन मेरे इस कहावत को काम में लेने का उद्देश्य कुछ और है.....मै बात कर रहा हु उनके बारे में जो मर चुके है.......हिन्दू धर्म में मरने के बाद अपने रीती रिवाज के अनुसार हम उनका क्रियाकर्म करते है...... जीते जी जिस पर एक रुपया खर्च ना किया हो..... मरनो उपरान्त हम उन पर भारी भरकम खर्च करते है..... महंगी महंगी लकड़िया..... गरीबो को खाने में घी नसीब नहीं लेकिन मृत पर ढेर सारा घी बर्बाद किया जाता है.........भगवान् के चरणों में एक फूल चढ़ाएंगे लेकिन मृत को फूलो से ढक देंगे....... और भी कई खर्चे है जो हम मृत पर करते है ..... मै इन खर्ची के सख्त खिलाफ हु..... प्रकृति चिल्ला चिल्ला कर कह रही है.... मुझे बर्बाद मत करो फिर भी हमारी आँखे नहीं खुल रही..... जब आँखे खुलेगी तो हम हैरान हो जाएंगे क्यों कि नजरो के सामने का नज़ारा बड़ा अजीब और दर्दनाक होगा.....|
जब हमारे चारो ओर हरियाली का नामो निशाँ ना होगा और फल फूल जैसी कोई चीज नहीं बचेगी.....तब हमारे पास पछताने के सिवाय कोई और चारा नहीं होगा.....  दोस्तों आपको अपनों से प्यार है.... मै आपकी भावनाओ की क़द्र करता हु लेकिन अगर हम इसी तरह लकड़िया काम में लेते रहेंगे और हमारी जरुरत को पूरा करने के लिए पेड़ कटते रहेंगे तो ...... आने वाला कल वृक्ष विहीन हो जाएगा जो कि सही नहीं है..... मै आपसे ये नहीं कहता कि आप अपना धर्म ना निभाए ..... मै चाहता  हु कि आप कोशिश करे कि कम से कम लकड़ी काम में ली जाए और जितनी लकड़ी क्रिया कर्म में काम में लेते है उसके एवज में वापस नए पौधे लगाए... ताकि प्रकृति का संतुलन ना बिगड़े......इसी तरह ज्यादा घी बर्बाद करना भी सही नहीं है...... मै चाहता हु कि हम एक नई प्रथा शुरू करे......कि मरने वाले की आत्मा की शान्ति के लिए हम वही खर्च गरीबो, अनाथो ओर लाचारो पर करे ताकि सही मायने में दिवंगत आत्मा को शान्ति मिले...... जाने वाले तो चले गए लेकिन जो इस धरती पर ही मौत के समान जिन्दगी जी रहे है उनका भला करो..... भगवान् आपका भला अवश्य करेगा...... कहते है कि " यही पशु प्रवर्ती है कि आप आप ही चरे.... वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे.....|" घबराइए मत मै आपको मरने के लिए नहीं बल्कि ज़िंदा लोगो को मरने से बचाने के लिए कह रहा हु.....ओर मरने वालो की आत्मा को शान्ति दिलाने के लिए कह रहा हु......... तो क्या आप मेरा साथ देंगे.... ओर इस फिजूल खर्च को रोकेंगे.....?

1 टिप्पणी:

  1. आपका राय सराहनीय है,
    वैसे फिजुल खर्च करने से हर किसी को परहेज करना चाहिये, क्योंकि ये शरीर विनाशकारी है, जिन तत्वों से बना है उन्ही में विलुप्त हो जाना है,
    एक दुसरे की नकल करने से परहेज करना जरूरी है,
    एक दुसरे के देखा-देखी से फिजुल खर्च और तींन गुणा बढ़ जाता है!

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